एम्‍ब्‍लायोपिया से अपने बच्‍चे को बचाना चाहते हैं तो ये करें

एम्‍ब्‍लायोपिया से अपने बच्‍चे को बचाना चाहते हैं तो ये करें

सुमन कुमार

आंखों की बीमारी मायोपिया हायपरमैट्रोपिया के बारे में तो तकरीबन हर किसी ने सुन रखा होगा मगर क्‍या आप आंखों की ही एक दूसरी बीमारी एम्‍ब्‍लायोपिया के बारे में जानते हैं? मायोपिया यानी निकट दृष्टि दोष जिसमें मरीज को दूर की चीजें देखने में परेशानी होने लगती है और हायपरमैट्रोपिया यानी दूरदृष्टि दोष जिसमें निकट की चीजें देखने में दिक्‍कत होती है, की ही तरह एम्‍ब्‍लायोपिया भी आंखों की देखने की क्षमता से ही संबंधित बीमारी है मगर ये जरा विचित्र किस्‍म की बीमारी है।

क्‍या है एम्‍ब्‍लायोपिया

दरअसल जब किसी बच्‍चे की एक आंखों की देखने की क्षमता दूसरी आंख के मुकाबले कम पड़ने लगती है तो इसे एम्‍ब्‍लायोपिया कहते हैं। अगर समय पर इस बीमारी का पता न चले तो बच्‍चे का दिमाग धीरे-धीरे सिर्फ ठीक वाली आंख से देखना शुरू कर देता और खराब आंख पर जोर देना बंद कर देता है। इसी वजह से आम बोलचाल की भाषा में इसे लेजी आई यानी आलसी आंख की बीमारी कहते हैं। इस तरह खराब आंख और खराब होती चली जाती है। इसमें एक समय ऐसा आ सकता है जब खराब आंख से दिखाई देना पूरी तरह बंद हो जाए।

इस बीमारी की वजह क्‍या है

आमतौर पर किसी बच्‍चे में ये समस्‍या तब आती है जब उसकी किसी एक आंख का फोकस दूसरी आंख के मुकाबले अच्‍छा हो। कई बार एक आंख से दूर तक दिखाई देता जबकि दूसरी आंख उतनी दूर तक नहीं देख पाती। ऐसे में जब बच्‍चे के दिमाग को एक आंख से साफ तस्‍वीर जबकि दूसरी आंख से धुंधली तस्‍वीर प्राप्‍त होती है तो दिमाग साफ तस्‍वीर को ग्रहण करता है और धुंधली तस्‍वीर की उपेक्षा करना शुरू कर देता है। यदि ये स्थिति महीनों या वर्षों तक बनी रहती है तो धुंधली आंख से दिखाई देना कम होता चला जाता है। कई बार किसी बच्‍चे की दोनों आंखें एक सीध में नहीं होतीं और ये स्थिति भी एम्‍ब्‍लायोपिया का कारण हो सकती है। जिन बच्‍चों में ये स्थिति होती है उनकी दोनों आंखे किसी ऑब्‍जेक्‍ट पर एक साथ फोकस नहीं कर सकतीं और ऐसे बच्‍चों को चीजें दो-दो दिखाई देती हैं। इसी प्रकार कुछ बच्‍चों की एक आंख में रोशनी सही तरीके से नहीं पहुंचती है। कोई चीज जैसे मोतियाबिंद या खून का पैच आदि रोशनी के रास्‍ते में अवरोध बनते हैं और इसके कारण भी एम्‍ब्‍लायोपिया हो सकता है।

इसका पता कैसे चलता है

सामान्‍य रूप से किसी बच्‍चे को देखकर ये नहीं बताया जा सकता कि उसे ये बीमारी हो गई है। यही वजह है कि आज से 20-25 साल पहले बच्‍चों में इसका पता चलना मुश्किल होता था क्‍योंकि बचपन में आंखों की जांच कराने की कोई परंपरा ही नहीं थी। कोई सोचता भी नहीं था कि इस तरह की कोई परेशानी किसी को हो सकती है। लेकिन अब स्‍वास्‍थ्‍य को लेकर ओवरऑल जागरूकता बढ़ी है। अब स्‍कूलों में भी बहुत कम उम्र में बच्‍चों की आंखों की जांच होती है जिसके कारण आंख में किसी परेशानी का पता चलता है और स्‍कूल इस बारे में बच्‍चों के अभिभावकों को आगे विस्‍तृत जांच करवाने की सलाह देते हैं जिससे बीमारी का पता चल जाता है।

इलाज क्‍या है

इस बीमारी का एक ही इलाज है कि खराब आंख पर जोर डालकर उसे ठीक आंख के बराबर देखने के लिए बाध्‍य किया जाए। इसके लिए डॉक्‍टर बच्‍चे की आंखों की जांच कर चश्‍मा देते हैं ताकि दोनों आंखों से एक बराबर दिखे। जब दोनों आंखों से बराबर दिखने लगता है तो ब्रेन को इसका संकेत जाता है और वो दोनों आंखों से प्राप्‍त संकेत को एक समान ग्रहण करता है। इससे बीमारी का बढ़ना तत्‍काल रुक जाता है। इसके बाद चिकित्‍सक बीमार आंख को ठीक करने के लिए कुछ अतिरिक्‍त उपाय कर सकते हैं जिसके तरह ठीक आंख को बंद करने के लिए उसके ऊपर पैच लगाया जाता है ताकि बच्‍चा केवल खराब आंख पर जोर देकर उससे अपना काम चलाए। इससे उस आंख के देखने की क्षमता बढ़ने लगती है और कई बार ठीक आंख के बराबर हो जाती है। हालांकि छोटे बच्‍चों को इस तरह पैच लगाने के लिए राजी करना बड़ा मुश्किल होता है। ऐसे में डॉक्‍टर ठीक आंखों में एक दवा एट्रोपिन डालने के लिए दे सकते हैं जो ठीक आंख की रोशनी को तात्‍कालिक रूप से धुंधला कर देता है और इससे भी खराब आंख पर जोर पड़ने लगता है। हालांकि ये पूरी तरह डॉक्‍टर पर निर्भर करता है कि वो बच्‍चे की स्थिति के अनुसार क्‍या इलाज करते हैं। यदि किसी की आंखें एक सीध में नहीं हैं तो ऐसे में डॉक्‍टर उसे ठीक करने के लिए आपको बच्‍चे की आंखों का एक छोटा सा ऑपरेशन करने की सलाह दे सकते हैं जिससे दोनों आंखों में संतुलन बन जाए।

एक बात समझ लें, यदि माता पिता में से किसी को एम्‍ब्‍लायोपिया है तो बच्‍चे में इसके होने की पूरी आशंका होती है। ऐसे में अपने बच्‍चे की समय पर जांच करवाएं। आम तौर पर हर बच्‍चे के आंखों की जांच पहले 6 महीने, उसके बाद 3 साल की उम्र और उसके बाद हर साल में एक बार होनी चाहिए। इससे बच्‍चे को होने वाली कोई भी परेशानी की जानकारी अभिभावकों को समय से मिल जाती है।

Disclaimer: sehatraag.com पर दी गई हर जानकारी सिर्फ पाठकों के ज्ञानवर्धन के लिए है। किसी भी बीमारी या स्वास्थ्य संबंधी समस्या के इलाज के लिए कृपया अपने डॉक्टर की सलाह पर ही भरोसा करें। sehatraag.com पर प्रकाशित किसी आलेख के अाधार पर अपना इलाज खुद करने पर किसी भी नुकसान की जिम्मेदारी संबंधित व्यक्ति की ही होगी।